बाल विवाह के खिलाफ लड़कियों ने छेड़ी जंग

बाल विवाह के खिलाफ लड़कियों ने छेड़ी जंग
जोधपुर। 16 मई वो तारिख है जिसे हम अखतीज यानि अक्षय तृतीया के रूप में जानते हैं। हमारे लिए ये दिन शायद खास न हो लेकिन भारत में हजारों ऐसी कम उम्र लड़कियां हैं जिनके लिए ये तारीख मजबूरी और बेबसी का दूसरा नाम है। इस दिन देश के कई इलाकों में बाल विवाह होते हैं और मासूम बच्चियों की जिंदगी दांव पर लग जाती है। ऐसी लड़कियों के लिए मसीहा बन रही हैं सिटीजन जर्नलिस्ट उषा। उषा जोधपुर की रहने वाली हैं। जब उषा 14 साल की हुई तो उनके माता-पिता ने उनकी भी सगाई कर दी और शादी की तारीख डेढ़ महीने बाद की तय हो गई। उस समय उषा 9वीं कक्षा में पढ़ती थीं और आगे भी पढ़ना चाहती थीं। उषा ने उनसे कह दिया कि अगर मेरी शादी करवाने की कोशिश की गई तो मैं आत्महत्या कर लूंगी। नतीजा ये हुआ कि घरवालों ने पढ़ाई का खर्चा उठाने से मना कर दिया।

उषा का स्कूल जाना भले ही बंद कर दिया गया हो, लेकिन 10वीं के बाद उन्होंने घर पर रह कर ही अपनी पढ़ाई को जारी रखा और आखिरकार 2 साल बाद अपनी सगाई तोड़ दी।

आज अपने बलबूते पर उषा एम ए तक पढ़ाई कर चुकी हैं। उषा ने फैसला किया कि बाल विवाह के खिलाफ वो लोगों को जागरूक करने का काम करेंगी।
इसके लिए उषा ने अपने कुछ दोस्तों को साथ लिया और घर-घर जाकर लोगों को समझाना शुरू किया। उषा ने लोगों को बाल-विवाह से होने वाले नुकसान के बारे में बताया। उन्हें ज्यादा से ज्यादा गांवों तक अपने इस अभियान को पहुंचाना था इसलिए उन्होंने कई गांवों में अलग-अलग ग्रुप बनाए और उनको प्रशिक्षित किया। जिनमें युवा और बच्चों के माता-पिता शामिल थे।
ग्रुप बनाने के साथ-2 उन्होंने उन गांवों की पंचायत, शिक्षक, पुलिस, मीडिया सबको अपने साथ जोड़ लिया। बाल विवाह के खिलाफ जागरुक करने के लिए ये लोग यात्राएं निकालते हैं। इसके साथ ही कठपुतलियों के खेल और नुक्कड़ नाटक के जरिए भी बात लोगों तक रखते हैं। अब तक उषा बाड़मेर और जालौर के 30 गांवों में और जोधपुर के तकरीबन 25 गांवों में अपनी मुहिम ले जा चुकी हैं।
उषा की कोशिशों का नतीजा ये है कि जिन गांवों में कभी कोई बड़ी लड़की नजर नहीं आती थी अब उन्हीं गांवों में 25 साल तक की गैर शादीशुदा लड़कियां देखी जा सकती हैं और उन्हें इस बात की खुशी है कि ये लड़कियां पढ़-लिखकर अपना भविष्य संवार रही हैं। उषा का सपना है कि एक दिन उनके राज्य राजस्थान में एक भी बाल विवाह न हो।
सिटीजन जर्नलिस्ट विजय लक्ष्मी की जंग
जयपुर। 1978 में बाल विवाह रोकने के लिए कानून बना। इसके तहत शादी के लिए लड़कियों की उम्र कम से कम 18 साल और लड़कों के लिए 21 साल तय की गई। लेकिन आज भी कई इलाकों में ये कानून बेमानी साबित हो रहा है। राजस्थान में आज भी 82 फीसदी शादियां 18 की उम्र से पहले ही हो जाती हैं। ऐसे में सिटीजन जर्नलिस्ट विजय लक्ष्मी ने न सिर्फ अपनी शादी को रोका बल्कि अपनी जैसी दूसरी लड़कियों को भी वो हिम्मत की राह दिखा रही हैं।
विजय लक्ष्मी जयपुर के जोहिंदा भोजपुर गांव में रहती हैं। अपने गांव में वो अकेली ऐसी लड़की हैं जिसने एमए तक पढ़ाई की है। और कोशिश में हैं कि उनके गांव कि सभी लड़कियां पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। लक्ष्मी की कहानी शुरू हुई थी आज से 7 साल पहले। तब उनकी उम्र सिर्फ 14 साल थी। घरवालों ने लक्ष्मी के हाथ पीले करने की तैयारियां शुरू कर दी थीं। लक्ष्मी ने मना किया और विरोध में खाना-पीना और लोगों से बात करना तक छोड़ दिया था।
लक्ष्मी का ये संघर्ष चल ही रहा था कि उसी दौरान गांव में 14 साल की एक लड़की की एक बच्चे को जन्म देने के दौरान मौत हो गई। इस घटना ने लक्ष्मी के परिवार को झकझोर कर रख दिया और माता पिता को दोबारा सोचने पर मजबूर कर दिया।
लक्ष्मी की लिए जिंदगी आसान नहीं थी जहां जाती लोग ताने मारते। ताने तो उसने चुपचाप सुन लिए लेकिन फैसला किया कि बाल विवाह के खिलाफ आवाज ज़रूर उठाएंगी। गांव में जब भी किसी कम उम्र की लड़की की शादी होती तो लक्ष्मी को लगता जैसे कि उनकी शादी हो रही है और उन्हें इस अपराध को रोकना ही होगा।
लक्ष्मी के पड़ोस में रहने वाली 13 साल की लड़की की शादी होने वाली थी लक्ष्मी ने उसकी शादी रुकवाने की काफी कोशिश की। उसके घरवालों को समझाया लेकिन फिर भी उसकी शादी हो गई। लेकिन लक्ष्मी ने हार नहीं मानी और उसे समझाया कि वो 18 साल से पहले ससुराल ना जाए। लक्ष्मी अब तक 9 नाबालिग लड़कियों की शादी रुकवा चुकी हैं और उनका ये संकल्प है कि वो बाल विवाह के खिलाफ अपनी ये लड़ाई मरते दम तक जारी रखेंगी।
सिटीजन जर्नलिस्ट कालिंदी की जंग
जोधपुर। दुनियाभर में होने वाले 40 फीसदी बाल विवाह केवल भारत में होते हैं। उससे भी शर्मनाक ये सच्चाई है कि हर साल 78000 लड़कियां कम उम्र में मां बनने के कारण दम तोड़ देती हैं। कोलकाता के आदिवासी इलाके में रहने वाली 13 साल की रेखा कालिंदी शायद इस सच्चाई को जानती थीं। बाल विवाह के खिलाफ उनकी लड़ाई अपने आप में एक मिसाल है।
कालिंदी ने अपनी दीदी की सिर्फ 11 साल में शादी होते हुई देखी। कम उम्र में उसकी शादी होने के कारण उसके चार बच्चे दो लड़के और दो लड़कियों में से एक भी नहीं बचे। इसलिए उन्होंने ठान लिया कि वो शादी नहीं करेंगी। लेकिन उनके लिए ये लड़ाई आसान नहीं थी। उनके घर में माता पिता और चार भाई-बहन हैं। कालिंदी के माता पिता बीड़ी बना कर किसी तरह से परिवार का गुजारा करते हैं। गरीबी की वजह से उनके इलाके में 11-12 साल की उम्र में ही बेटियों की शादी कर दी जाती है।
कालिंदी के घरवालों ने दीदी की तरह उसकी भी शादी 11 साल की उम्र में करवाने की सोची पर कालिंदी ने शादी करने से मना कर दिया। घरवालों ने हर तरह के हथकंडे अपनाए यहां तक कि उन्हें खाना और तेल-साबुन जैसी जरूरत की चीजें तक देना बंद कर दिया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
कालिंदी के स्कूल की शिक्षकों ने उनकी मदद की। उन्होंने उनके माता-पिता को भी समझाया और कहा कि उन्हें पढ़ाएं-लिखाएं और 18 साल के बाद ही शादी कराने की बात सोचें। आखिरकार कालिंदी के परिवार वाले समझ गए और उनकी शादी ना करने के लिए मान गए। लेकिन उनके और आसपास के गांवों में कई ऐसी लड़कियां थीं जिनका बचपन उनसे छीना जा रहा था इसलिए उन्होंने फैसला किया कि वो उन लड़कियों के बचपन को बर्बाद नहीं होने देंगी।
कालिंदी अपनी शिक्षकों के साथ घर-घर जाकर लोगों को समझाती हैं कि कम उम्र में वे अपनी बेटी की शादी ना कराएं। वे उन्हें पढ़ाएं-लिखाएं और 18 साल के बाद ही अपने बेटी की शादी कराएं। अब तक कालिंदी 18 साल से कम उम्र की 5 लड़कियों की शादी रुकवा चुकी हैं और इस लड़ाई में उनके साथ अब तक सात लड़कियां जुड़ चुकी हैं। उनकी इस हिम्मत के लिए राष्ट्रपति ने उन्हें इस साल राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से भी सम्मानित किया। इस पुरस्कार ने कालिंदी के हौसले को और बढ़ाया है और उन्हें पूरा भरोसा है कि हम सब लड़कियां इस मुहिम के जरिए अपने और आसपास के गांवों में बदलाव लाएंगी।

Posted in बिना श्रेणी | Tagged | Leave a comment

मैं माँ बनना चाहता हूँ

मैं माँ बनना चाहता हूँ अपनी शोना का, अपनी सबसे प्यारी बहन का। मैं चाहता हूँ के उसके चेहरे की उदासी सेकेंडों में छु कर दूँ जैसे माँ कर दिया करती थी। वो सारी बातें, तकलीफें उसकी उसके बताये बिना मुझे पहले से पता हो जैसे माँ को मालूम हो जाया करती थी। जैसे जब वो स्कूल से वापिस आती थी तो माँ उसके घंटी बजने से पहले ही दवाज़ा खोल देती। शोना अक्सर माँ से पूछती के माँ आप को कैसे पता चल जाता है के दरवाज़े पे मैं हूँ, तो माँ मुस्कुरा के कहती के बेटा मैं माँ हूँ। मैं “माँ” हूँ , तब शायद मुझे इस वाक्य का मतलब नहीं मालूम था लेकिन आज भली भांति जानता हूँ। अब शोना को अक्सर घंटी बजानी पड़ती है जब वो कॉलेज से आती है। खाना भी खुद ही रसोई घर से निकल कर खाना पड़ता हैं लेकिन माँ तो खाने को टेबल पर पहले से ही सजा कर रख देती थी और कभी कभी तो माँ थाली ले कर शोना के पीछे पीछे दौड़ती, भागती रहती थी ( जब शोना का मन अच्छा नहीं होता) और कहती रहती के एक कौर खा लो शोना बस एक कौर। आखिरकार माँ शोना को खिला कर ही दम लेती। और इस तरह थाली की भी सैर हो जाती थी। अब थाली का भी रंग उतरने लगा है कियूंकी उसका सफ़र भी तो अब रसोई घर से बस खाने के टेबल तक ही रह गया है। रात के खाने के बाद माँ अक्सर शोना और बाबा के साथ J.N.U की सड़कों पर टहलने निकलती थी और पीपल के पत्तों या फिर छोटे छोटे फूलों को (जो अभी अभी पेड़ों पर आये थे) देख कर खुश होती। माँ को छोटी छोटी खुशियाँ बटोरने की आदत थी। टहलते टहलते तीनों एक पेड़ के पास आ जाते और माँ उस पेड़ के टहनियों के बीच से सबको चाँद दिखाती। आज उस पेड़ को हमलोग माँ का पेड़ कहते हैं।

मैं माँ नहीं बन सका अपनी शोना का, दुनिया का कोई भी आदमी चाहे वो मर्द हो या औरत मेरी शीना का माँ नहीं बन सकता। मैं “माँ” हूँ, ये नहीं जता सकता। ये एहसास मुझे तब हुआ जब मेरी शोना मुझ से दो दिन के लिए रूठ गयी, मेरे किसी बात से नाराज़ हो गए थी शायद। मैं लगातार कोशिश करता रहा के वो मान जाये, हर वो कोशिश की जो माँ शोना को मानाने के लिए करती थी पर सफल ना हो सका। सोचता रहा के माँ तो शोना को दो मिनट में माना लेती थी।

अब शोना मान गयी है । वो मुस्कुराई तो जो सुकून मिला है मुझे वो बयान करने के लिए शायद कोई शब्द नहीं बना है अभी तक।

मैं माँ तो ना बन सका लेकिन अपनी शोना का भाई बन कर हमेशा उसके साथ रहूँगा। पहले मेरी शोना के परिवार में तीन सदस्य थे माँ, बाबा और शोना। अब चार सदस्य हैं माँ, बाबा, शोना और मैं!

ना स्वर की आई थी समझ और न शब्दों का ज्ञान था,
फ़िर भी माँ कह पाना तुझको माँ कितना आसान था,

मिश्री में घुली लोरी सुन जब नींद मुझे आ जाती थी,
सुंदर से सपने तुम मेरे तकिये पे रख जाती थी,

मेरी ऑंखें देख के मन की बातें तुम बुन लेती थी ,
मेरी खामोशी को जाने तुम कैसे सुन लेती थी,

मेरी नन्ही उंगली तेरी मुट्ठी मे छिप जाती थी,
कितनी हिम्मत तब मेरे इन क़दमों को मिल जाती थी,

चोट मुझे लगती थी लेकिन दर्द तो तुम ही सहती थी,
मेरी आँखों की पीड़ा तेरी आँखों से बहती थी,

तेरे आँचल मे छुपने को मन सौ बार मचलता है,
माँ तेरी गोदी में अब भी मेरा बचपन पलता है

Posted in बिना श्रेणी | Tagged | Leave a comment

कृष्ण का मैनेजमेंट फंडा, परिवार और बिजनेस में कैसे लाएं संतुलन

इंसान के लिए सबसे मुश्किल काम क्या है? अपने कर्मक्षेत्र और परिवार के बीच तालमेल बनाना। यहां अच्छे-अच्छे लोग असफल होते देखे गए हैं। जो बिजनेस में कूदे वो परिवार भूल गए, जिन्होंने परिवार संभाला, वे धंधे में मात खा गए। धन की भूख ने हमारे प्रेम की भूख को कम कर दिया है। आज परिवार एक साथ बैठकर बातें करना, भोजन करना, ऐसे सारे काम लगभग भूल चुके हैं। परमाणु परिवारों का बढऩा भी इसी कारण है, क्योंकि व्यक्तिगत लाभ, उन्नति और आनंद की भावना हम सब में घर कर रही है।

संयुक्त परिवारों का विघटन भी इसी व्यवसायिक मानसिकता का परिणाम है। परिवार हमारी संपत्ति है। इस बात को समझना बहुत जरूरी है। खुद के लिए हासिल की गई अपार सफलता भी तब तक पूरा मजा नहीं देती जब तक कि उसे अपनों के साथ बांटा ना जाए।

परिवार को समय दीजिए। सप्ताह या महीने में एक दिन ऐसा निकालें जो सिर्फ परिवार के लिए हो। माता-पिता के साथ बैठें, उनसे चर्चा करें, पति-पत्नी अपने लिए समय निकालें, बच्चों को समय दें। साथ में भोजन करें। कहीं घूमने जाएं। किसी धार्मिक स्थान की यात्रा करें। ये काम आपमें एक अद्भुत ऊर्जा भर देगा।

राम और कृष्ण ने भी अपने पारिवारिक जीवन को दिव्य बनाए रखा। कृष्ण के जीवन में चलते हैं। माता-पिता, भाई-भाभी, 16108 पत्नियां और हर पत्नी से 10-10 बच्चे। कितना बढ़ा कुनबा, कैसा भव्य परिवार। फिर भी सभी कृष्ण से प्रसन्न, किसी को कोई शिकायत नहीं। सभी को बराबर समय दिया। कोई आम आदमी होता तो या तो छोड़कर भाग जाता, या फिर परिवार में ही खप जाता। कृष्ण थे तो संभाल लिया। दुनियाभर के काम किए लेकिन कभी परिवार की अनदेखी नहीं की। जीवन में कुछ नियम थे, जैसे सुबह उठकर माता-पिता से आशीर्वाद, पत्नियों से चर्चा, बच्चों की शिक्षा आदि की व्यवस्था देखना। सबसे हमेशा संवाद बनाए रखना। हमें भी कृष्ण के इस पक्ष से कुछ सिखना चाहिए। परिवार के लिए समय निकालें। दिनचर्या को कुछ ऐसे सेट करें कि परिवार को कोई सदस्य उससे अनछुआ ना रहे।

Posted in बिना श्रेणी | Tagged | Leave a comment

ऐसे पहचाना जा सकता है सच्चा प्यार…

महाभारत में एक प्रेम कथा आती है। ये कहानी है राजा नल और उनकी पत्नी दयमंती की। ये कथा हमें बताती है कि प्रेम को किसी शब्द और भाषा की आवश्यकता नहीं है। प्रेम को केवल नजरों की भाषा से भी पढ़ा जा सकता है।

महाभारत में राजा नल और दयमंती की कहानी कुछ इस तरह है। नल निषध राज्य का राजा था। वहीं विदर्भ राज भीमक की बेटी थी दयमंती। जो लोग इन दोनों राज्यों की यात्रा करते वे नल के सामने दयमंती के रूप और गुणों की प्रशंसा करते और दयमंती के सामने राजा नल की वीरता और सुंदरता का वर्णन करते। दोनों ही एक-दूसरे को बिना देखे, बिना मिले ही प्रेम करने लगे। एक दिन राजा नल को दयमंती का पत्र मिला। दयमंती ने उन्हें अपने स्वयंवर में आने का निमंत्रण दिया। यह भी संदेश दिया कि वो नल को ही वरेंगी।

सारे देवता भी दयमंती के रूप सौंदर्य से प्रभावित थे। जब नल विदर्भ राज्य के लिए जा रहे थे तो सारे देवताओं ने उन्हें रास्ते में ही रोक लिया। देवताओं ने नल को तरह-तरह के प्रलोभन दिए और स्वयंवर में ना जाने का अनुरोध किया ताकि वे दयमंती से विवाह कर सकें। नल नहीं माने। सारे देवताओं ने एक उपाय किया, सभी नल का रूप बनाकर विदर्भ पहुंच गए। स्वयंवर में नल जैसे कई चेहरे दिखने लगे। दयमंती ने भी हैरान थी। असली नल को कैसे पहचाने। वो वरमाला लेकर आगे बढ़ी, उसने सिर्फ स्वयंवर में आए सभी नलों की आंखों में झांकना शुरू किया।

असली नल की आंखों में अपने लिए प्रेम के भाव पहचान लिए। देवताओं ने नल का रूप तो बना लिया था लेकिन दयमंती के लिए जैसा प्रेम नल की आंखों में था वैसा भाव किसी के पास नहीं था। दयमंती ने असली नल को वरमाला पहना दी। सारे देवताओं ने भी उनके इस प्रेम की प्रशंसा की।

कथा समझाती है कि चेहरे और भाषा से कुछ नहीं होता। अगर प्रेम सच्चा है तो वो आंखों से ही झलक जाएगा। उसे प्रदर्शित करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। प्रेम की भाषा मौन में ज्यादा तेज होती है।

Posted in प्रेम | Leave a comment

Hello world!

Welcome to WordPress.com. After you read this, you should delete and write your own post, with a new title above. Or hit Add New on the left (of the admin dashboard) to start a fresh post.

Here are some suggestions for your first post.

  1. You can find new ideas for what to blog about by reading the Daily Post.
  2. Add PressThis to your browser. It creates a new blog post for you about any interesting  page you read on the web.
  3. Make some changes to this page, and then hit preview on the right. You can alway preview any post or edit you before you share it to the world.
Posted in बिना श्रेणी | 2 Comments